सोमवार, २० एप्रिल, २०२०

शायरी...

गाल गुलाबी, होंठ शबाबी,
आँखों की वो हसीं चमक,
रेशमी जुल्फों का वो साया,
मदहोश करा दे उनकी महक

आपने आईने में देख कर,
जिस तरह खुद को सवारा होगा,
आप की इन्ही अदाओं पे,
आईना भी दिल हारा होगा
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वफ़ा तो हमने भी की थी,
पर हमको खुदा न मिला,
हमारे तसव्वुर का अंजाम,
दिल-ए-नादान को मिला,

नहीं बनेगी कामिल,
जिंदगी उनके बिना,
मोहब्बत का यह प्याला,
मुकम्मल ना हुआ.
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ख्वाहिशें मेरी इतनी भी क्या बड़ी थी ऐ ख़ुदा,
एक छाँव ही तो मांगी थी जिंदगी के धुप में,
समंदर सा ढूंढता रहा मैं साहिल, लहरों के सहारे,
पर मुकम्मल समा ना मिला किनारे की रेत में
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ठहराव की तलाश में यु ही,
भटकता रहा मैं दर बदर |  
भूल  गया था शायद,
झांकना खुद के ही अंदर ||
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अस्त व्यस्त बानी पड़ी है जिंदगी,
लेकिन मन में एक सुकून सा है |
जिंदगी जीने का असली मजा,
आने लगा अब खालीपन में है ||

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